रिपोर्ट मुकेश कुमार
दूदू। छापरवाड़ा बांध की पाल एवं नहरें में किंकर,बबूलों के फैलने से बांध में पानी की आवक काफी कम होती है जिससे बांध पुरा नही भर पाता है बारिश का पानी बांध के बजाय व्यर्थ ही बह जाता है। यह बांध 1995 से लेकर अब तक पूरा नहीं भरा है और चादर भी नहीं चली है। इसका मुख्य कारण बांध के ऊपरी हिस्से पर कई जगह एनिकट का निर्माण होना व छह मोरा नाला में जगह-जगह अतिक्रमण है।
यह रहा इतिहास
जल संसाधन विभाग के अनुसार राजा मानसिंह प्रथम के शासन में वर्ष 1894 में मात्र 7.30 लाख रुपए की लागत से छापवाड़ा बंध बनाया गया था। बांध का भराव 17 फीट और कैचमेंट 322 स्कवायर माइल है। बांध का अधिकतम सिंचित क्षेत्र 47468 एकड़ है, जबकि बांध भरने पर 29000 एकड़ भूमि की सिंचाई हो सकती है।
बांध से दूदू, फागी व टोंक जिले की मालपुरा तहसील के कई किसानों को फायदा मिलता है
बांध से उत्तरी व दक्षिणी नहरें बनवाई गई। उत्तरी बड़ी नहर जिसकी लम्बाई 32 मील के लगभग है और यह सुल्तानिया, फागी जाकर कालख नहर में मिलती है। जहां से इन दोनों नहरों का पानी माधोराजपुरा तक सिंचाई के लिए पहुंचता है। उत्तरी निचली छोटी नहर जिसकी लम्बाई करीब 10 कि.मी. है, जो गणेशपुरा तक पानी पहुंचाती है। दक्षिण की ऊंची बड़ी नहर जो कि 27 कि.मी. है किरावल, मालपुरा तक तथा नीची छोटी नहर जिसकी लम्बाई 8 कि.मी. है बालापुरा तक पहुंचती है।

पिछली बार 10. फीट 11 इंच पानी की आवक हुई थी।
बांध में पानी की आवक का मुख्य स्त्रोत ईंटाखोई फीडर व छह मोरा नाला है। मासी नदी को रोककर पानी छापरवाड़ा बांध में लाया जाता है। वहीं गंगासागर बांध दूदू, बांडोलाव व धोबोलाव बांध नरैना का पानी भी छह मोरा नाला से होकर छापरवाड़ा बांध में पहुंचता है। संतोष चोधरी सहायक अभियंता ने बताया कि पिछले साल भी बारिश की कमी के चलते बांध में करीब 10. फीट 11 इंच पानी की आवक हुई थी।