रिपोर्ट रितीक सिरोहीया
बगरू। कस्बे के मीना मार्केट में स्थित डिसीजन ग्रुप ऑफ इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी के संस्था प्रधान देवी सहाय कुमावत ने बताया कि छात्रों को नियमित शैक्षिक भ्रमण पर ले जाया जाना जरूरी होता है जहाँ पर छात्र खुले वातावरण में शिक्षा को अपने व्यक्तिगत अनुभवों से परिभाषित करते है । डिसीजन ग्रुप के शिक्षकों ने बताया कि बच्चों को भ्रमण के लिए माउंट आबू व ऐतिहासिक शैक्षिक भ्रमण के माध्यम से छात्रों में एक अनुभूति जागृत होती है, जिससे वे भारत की विभिन्नताओं जैसे – इतिहास , विज्ञान शिष्टाचार और प्रकृति को व्यक्तिगत रूप से जान सकते है इसके अतिरिक्त संस्था प्रधान देवी सहाय कुमावत व बुद्धि प्रकाश कुमावत ने कहा कि छात्रों में समूह में रहने की प्रवृति , नायक बनने की क्षमता तथा आत्मविश्वास एवं भाई चारे की भावना प्रबल होती है। भ्रमण यदि सुनियोजित तरीके से किए जाएँ तो वे सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के लिए बहुत महत्व रखते हैं।योजनाबद्ध भ्रमण, जिसमें बाहर के स्थानों पर जाने के कार्यक्रम शामिल रहते हैं, आमतौर पर स्वयं में सम्पूर्ण होते हैं। वे किसी एक स्थान पर जाने से सम्बद्ध होते हैं और उनका उद्देश्य मुख्य तौर से बच्चों की रुचि और आनन्द को बनाए रखने का होता है। इसलिए सैर के बाद का कार्य उन्हें खुश करने वाले स्वाभाविक ढंग से विकसित होना चाहिए। इसमें शिक्षक भी सावधानी से कुछ मार्गदर्शन कर सकते हैं।भ्रमण के बाद की जाने वाली गतिविधियाँ इस प्रकार की हो सकती हैं हैं। विभिन्न सन्दर्भों में कला तथा शिल्प के लिए बहुत लाभदायक हो सकते हैं। बच्चे काल्पनिक कलाओं की कलात्मक रचना भी कर सकते हैं।हर साल एक “भ्रमण पुस्तिका” बनाई जा सकती है। उसे संस्था के ऑफिस में किसी अलमारी के एक ‘खास’ खाने में प्रदर्शित किया जा सकता है। यदि उसी स्थान या उस जैसे ही किसी अन्य स्थान का भ्रमण फिर से होना है तो इन पुस्तिकाओं को बच्चों के अन्य समूहों के साथ शुरुआती चर्चाओं में प्रयोग किया जा सकता है।बच्चों द्वारा लिखे गए भ्रमण के वृत्तान्त विस्तृत तो नहीं होंगे मगर इस प्रकार के काम की इच्छा रखने वाले या इसकी काबिलियत वाले बच्चों को प्रोत्साहित तो किया ही जाना चाहिए। यह कर पाने में कुछ कम समर्थ बच्चे उन लोगों को धन्यवाद पत्र लिख सकते हैं जिनकी मदद से यह भ्रमण सम्भव हो पाया। उपयुक्त शीर्षक के साथ कोई तस्वीर या रेखाचित्र कक्षा में दीवार-समाचारपत्र के लिए बनाए जा सकते हैं। भ्रमण-स्थल या स्कूल में वापिस आकर मोबाइल या कैमरे से की गई रिकॉर्डिंग बहुत लाभदायक और सारगर्भित हो सकती हैं। वास्तव में, जिन बच्चों को लिखने में मजा नहीं आता, उन्हें अपने अनुभवों को अपनी ही आवाज में रिकॉर्ड करने में आनन्द आ सकता है। स्वयं को अभिव्यक्त कर पाने, अर्थों में सटीकता आने, शब्दों के इस्तेमाल और प्रश्न कर पाने में बढ़ती आसानी और महारत हासिल करने के साथ आत्म-विश्वास भी बढ़ता है।शिक्षकों द्वारा थोड़े जोश से योजना बना ली जाए तो भ्रमण के बाद रोचक किस्म के काम की गुंजाइश अनन्त हो जाती है। 25 साल का एक पूर्व विद्यार्थी जब यह याद रखता है कि किस प्रकार उसने मछली-घर के एक भ्रमण के बाद कक्षा के लिए विभिन्न प्रकार की सामग्री से भरकर एक भीमकाय व्हेल का पुतला बनाया था तो मन को सच में सन्तुष्टि मिलती है।