प्रभु भक्ति ही अपने जीवन का परम लक्ष्य होना चाहिए- आर्यिका विज्ञा श्री

जयपुर। परम पूज्य भारत गौरव गणिनी आर्यिका रत्न 105 विज्ञा श्री माताजी के पावन सानिध्य में आज नेनवा के आदिनाथ जिनालय में जिन सहस्त्रनाम विधान की भव्यता के साथ पूजा हुई। जैन समाज के मीडिया प्रवक्ता राजाबाबु गोधा ने अवगत कराया किइस विधान में अनेकानेक भक्तों ने सम्मिलित होकर विश्व शांति की भावना को प्रधानता देकर धर्म की भव्य प्रभावना बढ़ाई है , कार्यक्रम में आर्यिका श्री ने अपने मंगलमय प्रवचन में श्रावकों को संबोधित करते हुए कहा कि जिस मनुष्य के पास भक्ति रूपी चाबी है वही कर्म रूपी ताले को खोल सकता है इसलिए प्रभु भक्ति ही अपने जीवन का परम लक्ष्य होना चाहिए भक्ति जब संगीत में प्रवेश करती है तब संगीत कीर्तन बन जाता है ,भक्ति जब सफर में प्रवेश करती है तब सफर तीर्थ यात्रा बन जाता है| भक्ति जब भूख में प्रवेश करती हैं तब भूख व्रत बन जाती हैं ,भक्ति जब घर में प्रवेश करती है तब घर मंदिर बन जाता है,भक्ति जब व्यक्ति में प्रवेश करती है तब व्यक्ति मानव बन जाता है भक्ति पानी में प्रवेश करती है तब पानी चरणामृत बन जाता है और भक्ति जब कार्य में प्रवेश करती है तब कार्य कर्म बन जाता है अतः मनुष्य को अच्छे कर्म नित्य करना चाहिए |